“सात समुन्दर पार करायिके, ले गईल दूर बड़ी दूर पेठायिके” ये गीत राज मोहन का है जो दूर देश, सात समुन्दर पार पूर्वजों से लेकर अपने तक चला आ रहा खालीपन, दर्द, पहचान में मतभिन्नता होने के दर्द को गाते हैं, वो गिरमिटिया या कन्त्राकी का दर्द गाते हैं। गिरमिटिया वो शब्द है जो बिहार और उत्तर प्रदेश के भोले-भाले ग्रामीण जिन्हें तब अंग्रेजी क्या हिंदी भी बोलनी नहीं आती थी, भोजपुरी या अवधी बोलने वाले लोग थे, हिंदी बस समझ लेते थे, उन्हें सुनहरे सपने दिखा कर अंग्रेजी हुकूमत द्वारा दूर देश ले जाया गया।
ये बात शुरू होती है १८३३ में जब तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत द्वारा दास प्रथा के खात्मे की घोषणा होती है और यूरोप के विश्वभर में फैले उपनिवेशों के लिए सस्ते मजदूरों की जरुरत होती है तब वो दास प्रथा को नया स्वरूप देकर एक प्रस्ताव लाते हैं जिसे इंग्लिश में इंडेंचर्ड लेबर कॉन्ट्रैक्ट या अग्रीमेंट कहा जाता।
क्यूँकि यूरोपीय देशों के उपनिवेश विश्वभर में फैले हुए थे और वे अलग-अलग भौगोलिक और जलवायु वाले क्षेत्र थे, उसके लिए सस्ते और सहनशील मजदूरों के लिए उनकी नज़र हिन्दुस्तान की ओर जाती है, कभी विश्वगुरु रहा भारत तब लगभग हजार साल के आक्रमण,संक्रमण और गुलामी के दौर से गुजरता हुआ बहुत कमजोर हो चुका था। एक ओर जहां वो सोने की चिड़िया अब चहचहाना छोड़ चुकी थी वहीं अंग्रेजी हुकूमत तक़रीबन पुरे विश्व में फैली थी और बाकि यूरोपिय देशों के औपनिवेशिक द्वीपीय वातावरण में ढलने लायक थे और उनके मनमाफिक भी थे।
दास प्रथा के खात्मे के बाद जो नया मजदुर एग्रीमेंट या प्रस्ताव था जिसे इंडेंचर्ड लेबर कॉन्ट्रैक्ट या अग्रीमेंट कहा गया। उसे तब के बिहार और उत्तर प्रदेश के अनपढ़ किसान, ग्रामीण और मजदुर अग्रीमेंट बोल नहीं पाते थे और अग्रीमेंट का अपभ्रंश होते-होते गिरमिट हो गया। कहीं – कहीं कॉन्ट्रैक्ट कन्त्राकी हो गया, और इसी एग्रीमेंट या कॉन्ट्रैक्ट के तहत पानी के जहाजों से सुदूर विभीन्न द्विपिये देश ले जाये गए किसान मजदुर गिरमिटिया या कन्त्राकी कहलाये। जिस गायक राज मोहन का लेख के आरंभ में जिक्र है वो भी एक गिरमिटिया वंशज हैं और उनकी ५वीं-६वीं पीढ़ी सूरीनाम और हॉलैंड में आबाद है।
इन गिरमिटिया किसानों को बाहर ले जाने के लिए अंग्रेज उन्हें तरह-तरह के झूठे सपने दिखाते थे। वो प्रलोभन देते कि ५ साल के अग्रीमंट में वो इतना कमा लेंगे की अगली पीढ़ियों की जिंदगी आसान हो जाएगी, उन्हें बहुत पैसा मिलेगा, उनकी गरीबी और भुखमरी दूर हो जाएगी, उन्हें ऐसे कई हसीन सपने दिखाकर दूर देश मॉरिशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, गुयाना ,फ्रेंच गुयाना, फिजी, बारबोडस, मैडगास्कर, जमैका, अफ्रीका आदि द्वीपीय देश ले जाया गया जो तत्कालीन ब्रिटिश या किसी अन्य यूरोपियन देश के उपनिवेश थे । .
गिरमिटिया लोग जब पानी के जहाज से निकले तो आँखों में सुनहरे सपने थे उन्हें क्या पता था की उन्हें मजदूरी उतनी ही मिलेगी की वो किसी तरह जिन्दा रह पायेंगे। सच्चाई वादों और सपनों के बिलकुल उलट थी। उन्हें बमुश्किल जीने भर का मेहनताना मिलता था या बस कुछ मुठ्ठी भर खाने को अनाज। बस वो जिन्दा रह पायें उतनी ही मजदूरी। एक ओर जहां काम ना करने पर दंड के प्राभदान थे वहीं दूसरी ओर घर वापसी का सोचना भी गुनाह था। मेहनताने को लेकर भी राजमोहन का एक गाना है “दुई मुट्ठी इक दिन के मजूरी “। इस गीत में मजदूरी और उसके एवज में मिले मेहनताने, सपने और उसके टूटने के दर्द को बयान किया गया है। कैसे झूठे सपने दिखाकर उन्हें सुदूर पार ले जाकर ठगा जाता था, कैसे उन्हें एक फरेबी कॉन्ट्रैक्ट में बांध कर सात समुन्दर पार ले जाया गया। अब वो कॉन्ट्रैक्ट में बंधे होने के कारण वापस घर (भारत) भी नहीं आ सकते थे, ना पैसा जूटा पाते थे की घर भेज दें और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था।
द्वीपीय देशों में पहुँचने के कुछ दिनों के उपरांत ही उन्हें अहसास हो जाता था कि उन्हें ठगा जा चुका है। मेहनताने से बचा कर वो इतना पैसा इकट्ठा नहीं कर पा रहे थे कि उनकी वापसी का टिकट हो जाये और अगर टिकट भर हो भी जाये तो घर वापस जाएँ भी तो क्या मुंह लेके। जिन रिश्ते नाते को छोड़ कर वो पैसा कमाने इतनी दूर आए, ५ साल बाद वापसी में खाली हाँथ जाते तो क्या मुंह दिखाते, ना वो वापस जा सकते थे ना ही वहां पर उनका जीवन आसान था। कुछ दिनों में उन्हें अहसास हो जाता था कि अब उनका देश छूट गया, उनका घर छूट गया, माता पिता, रिश्ते नाते सब छुट गए। तक़रीबन १५ लाख लोगों में से कुछ हजार भाग्यशाली लोग ही वापस देश लौट पाए। बाकी सब वहीँ के होके रह गए। गिरमिटिया या कन्त्राकी हो गए।
इन गिरमिटिया लोगों को बाहर ले जाने के लिए मुख्यतः कलकत्ता का उपयोग होता था क्यूँकि बिहार और उत्तर प्रदेश के सबसे नजदीक कलकत्ता का बंदरगाह ही था। किसानों, मजदूरों को एग्रीमेंट करके कलकत्ता ले जाया जाता और आवश्यकतानुसार उन्हें विभिन्न द्वीपों पर भेज दिया जाता था। इस प्रक्रिया के शुरू होने से अंत तक में एक सार्थक बदलाव भी दिखा। सदियों से चली आ रही जातीय वर्ण व्यवस्था जो भारत में आज भी विधमान है, वो वर्ण व्यवस्था इस प्रक्रिया में टूट गयी और आज सारे गिरमिटिया लोगों की एक ही जाति है, हाँ धर्म आज भी अपने रूप में मौजूद है। होता ऐसा था की जब लोगों को जहाज पर बैठाया जाता था तो सबको एक सा लिबास और एक साथ खाना दिया जाता, खाना खाने की जगह भी एक ही होती। तो जहाज से ले जाने से वहां खेतों या अन्य जगह की मजदूरी से शेल्टर में रहने तक कोई भेदभाव नहीं होता था। सब भारतीय मजदूर होते थे। इस प्रक्रिया के कारण आज गिरमिटिया समाज से जातियां गायब हैं। वहां शादी ब्याह या अन्य प्रयोजन में जाति का कोई मोल नहीं होता है, जाति गिरमिटिया समाज में मौजूद ही नहीं है।
१८३३ से लगभग १९१८ तक चले इंडेंचर्ड लेबर कॉन्ट्रैक्ट के तहत १५ लाख भारतीय किसानों एवम मजदूरों को विभिन्न द्विपिये देश ले जाया गया। उनकी संख्या नीचे देखें –
Indian indentured labour importing colonies | |
Name of Colony | Number of Labourers Transported |
British Mauritius Todays Mauritius | 453,063 |
British Guiana Todays Guyana, a Caribbean country | 238,909 |
British Trinidad and Tobago Todays Trinidad & a Caribbean country Tabago, | 143,939 |
British Jamaica Todays Jamaica, a Caribbean country | 36,412 |
British Malaya Todays Singapore | 400,000 |
British Grenada Todays Grenada, a Caribbean country | 3,200 |
British Saint Lucia Saint lucia , a Caribbean country | 4,350 |
Natal Today it is part of South Africa | 152,184 |
Saint Kitts Angulia , a Caribbean country | 337 |
Saint Vincent Todays Saint Vincent and the Grenadines, a Caribbean country | 2,472 |
Réunion Overseas region of France | 26,507 |
Dutch Surinam Todays Surinam | 34,304 |
British Fiji Todays Fiji | 60,965 |
East Africa Now Part of Kenya | 32,000[15] |
Seychelles A East African country now | 6,315 |
British Singapore Todays Singapore | 3,000 |
Total | 1,597,957 |
उपरोक्त लिखित संख्या में से बमुश्किल कुछ हजार ही वापस अपने घर भारत आ पाए, ज्यादातर मज़बूरी और बेबशी में जहाँ थे वहीँ रहने को मजबूर हो गए। गिरमिटिया लोग तो अपने आँखों में सुनहरे सपने लेकर गए थे लेकिन वास्तव में इंडेंचर्ड लेबर कॉन्ट्रैक्ट इक तरह की बंधुआ मजदूरी थी। पांच साल से पहले वापस घर जा नहीं सकते थे और मजदूरी इतनी थी नहीं, अब वापस घर आते भी तो किस मुंह से। घरवालों, समाज को क्या जवाब देते। लोग पूछते कि क्या लेके आये ५ साल में विदेश से तो वो क्या बताते, इन्ही उधेड़बुन, चुभते सवालों और मज़बूरी को अपने सीने में बसाये बहुसंख्य गिरमिटिया लोग जहाँ थे वहीं भगवान के भरोसे अपने आप को छोड़ दिया क्योंकि उनके पास विकल्प सिमित थे। उनमें से कुछ लोगों को वहां खेती के लिए जमीन के छोटे टुकड़े भी मिले तो उन्होंने जहाँ थे वहीं रुक जाने का निर्णय लिया। कुछ अन्यत्र मजदूरी करने लगे और जिंदगी को गिरमिटिया ही बना दिया।
वो गिरमिटिया मजदुर, किसान दूर देश तो ले जाये गए थे लेकिन वो अपने साथ अपनी भाषा, संस्कृति, परम्पराएँ, कहानियाँ, गीत और संगीत भी लेते गए थे। वो गीत और संगीत कुछ मूल रूप में, कुछ सामायिक और भाषाई बदलावों के साथ आज भी जिन्दा और आबाद है। सूरीनाम, मारीशस और फिजी में तो शादी ब्याह और बाकि पर्व त्योहार वैसे ही मनाये जाते हैं जैसे आज बिहार के किसी गाँव में मनाया जाता है। आज भी वहां शादियों में वही गीत, गारी, मटकोड़, तिलक, मड़वा, ब्याह और बिदाई है जैसा बिहार के किसी गाँव या शहर में होता है। ज्यादातर गिरमिटिया वासी देशों में भोजपुरी ही गिरमिटिया लोगों की सर्वमान्य भाषा है, लेकिन ये गिरमिटिया भोजपुरी पूर्णतया बिहार या उत्तर प्रदेश की भोजपुरी नहीं है। गिरमिटिया भोजपुरी अवधी, भोजपुरी, मगही और कुछ ब्रज का मिश्रण है। कोई भी सामान्य भोजपुरी बोलने वाला गिर्मित्य भोजपुरी को समझ पाता है लेकिन ये बिहार और उत्तर प्रदेश वाले मूल भोजपुरी से थोड़ा भिन्न है, इसके लिए हमें गिरमिटिया वंशजों को धन्यवाद देना चाहिए की तमाम बाधाओं और उलझनों के बावजूद उन्होंने अपनी भाषा और संस्कृति को बचा के रखा और ये आसन नहीं है, आज भी उन्हें आलोचना और पक्षपात का सामना करना पड़ता है, कई देशो में जहाँ पर वो है उन्हें दबाने और कुचलने की कोशिश चलती रहती है लेकिन वो अडिग हैं। एक अनुमान के अनुसार आज करेबियन द्वीपीय देशों में ही लगभग २.६ मिलियन भारतीय मूल के लोग हैं।
गिरमिटिया लोगों की वजह से आज विश्व में कई देश ऐसे हैं जहाँ भारतीय मूल के लोगों की बहुतायतता है। आज विश्वभर में कई हिन्दुस्तान देखने को मिल जातें है। अभी तक लगभग ११ देशों के राष्ट्राध्यक्ष भारतीय मूल के लोग रह चुके हैं, या हैं, और ये गिरमिटिया समाज की वजह से ही संभव है। मॉरिशस, सूरीनाम और फिजी ही ऐसे देश हैं जहाँ भारतीय संस्कृति, परम्पराएँ और रीति रिवाज अलग या कई नए रंगों के साथ देखने को मिलती है।ये शायद इन देशों में भारतीय मूल के लोगों की बहुतायतता की वजह से ही भारत जिन्दा है।
मॉरिशस : मॉरिशस को हिन्द महासागर में छोटा हिन्दुस्तान भी बोला जाता है।लगभग १३ लाख की आबादी वाले इस देश में भारतीय मूल के लोग लगभग ६८% हैं। यहाँ बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओँ में भोजपुरी और हिंदी है। मॉरिशस के भारतीय मूल के लोगों में निम्नलिखित नाम प्रमुख हैं :
• Seewoosagur Ramgoolam – first Chief Minister, Prime Minister of Mauritius, and Governor-General
• Anerood Jugnauth – held President and Prime minister posts
• Navin Ramgoolam – Prime Minister
• Viveka Babajee – Model Actress
• Sheila Bappoo – Politician
• Rashid Beebeejaun – former Deputy Prime minister
• Sunil Benimadhu – Notable Banker and Businessman
• Basdeo Bissoondoyal- Freedom fighter, Politician
• Sookdeo Bissoondoyal – Freedom fighter, Politician
• Satcam Boolell – Politician
• Angidi Chettiar – Vice president
• Alan Ganoo – Politician
• Hurrylall Goburdhun – Supreme court judge
• Ramchundur Goburdhun – diplomat best known for his role in the “Maneli Affair” of 1963, an attempt to end the Vietnam war
• Ameenah Gurib-Fakim – President
• Maya Hanoomanjee – Notable Politician
• Mahesh Jadu – Hollywood Actor
• Kher Jagatsingh – Politician
• Pravind Jugnauth – Prime Minister
• Misha Mansoor – musician and Notable politician
• Abdool Razack Mohamed – Politician
• Prem Nababsing – Politician
• Ariranga Govindasamy Pillay- Chief Justice of Mauritius
• Veerasamy Ringadoo – Notable Politician
• Rama Sithanen – Former deputy Prime minister
• Khal Torabully – Poet , Author
• Cassam Uteem – President of Mauritius
• Alain Ramanisum – Composer, singer
• Vikash Dhorasoo – who played for French football team is of the Indo-Mauritian origin
Refrence : https://en.wikipedia.org/wiki/Mauritians_of_Indian_origin
सूरीनाम : सूरीनाम दक्षिण अमेरिका में स्थित एक द्वीपीय देश है। जब बिहार और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण किसानों को वहां मजदूरी के लिए ले जाया गया तब वो हॉलैंड का उपनिवेश था। विभिन्न संजातीय (ethnic) नस्ल वाले लोगों के इस देश में भारतीय मूल के निवासियों की जनसँख्या सबसे अधिक है। भारतीय मूल के सूरीनामी लोगों की आबादी लगभग कुल आबादी का २७.४ % है। भारतीय मूल के सूरीनामियों की बड़ी संख्या पिछले ४०- ५० सालों से नीदरलैंड में भी मौजूद है। नीदरलैंड में सूरीनाम मूल के लगभग १.५७ लाख गिरमिटिया वंशज रहते हैं, यहाँ बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओँ में भोजपुरी भी एक भाषा है। कुछ महत्वपूर्ण भारतीय मूल के सूरीनामी लोगों के नाम नीचे देखें:
Notable Indo-Surinamese people
• Chan Santokhi, President of Suriname, Ex-chief of police, Progressive Reform Party politician
• Ashwin Adhin, Surinamese Vice President
• Errol Alibux, politician, former Prime Minister of Suriname, suspect in the December murders trial
• Robert Ameerali, politician
• Kiran Badloe, windsurfer
• Kiran Bechan, football player
• Paul Bhagwandas Military officer, Football Coach, Suspect of December Murder 1982
• George Hindori, Hindu Brahmin and Surinamese politician
• Tanja Jadnanansing, Labour Party politician
• Fareisa Joemmanbaks, model and actress
• Ricardo Kishna, football player
• Jagernath Lachmon, politician, ex-Speaker of the National Assembly of Suriname
• Fred Ramdat Misier, politician
• Luciano Narsingh, Dutch footballer
• Prem Radhakishun, lawyer, columnist, actor and radio and television producer.
• Pretaap Radhakishun, former Prime Minister of Suriname
• Anil Ramdas, columnist, correspondent, essayist, journalist, and TV and radio host
• Ram Sardjoe, politician, ex-Speaker of the National Assembly of Suriname
• Ramsewak Shankar, politician
• Aron Winter, football player
• Ramdev chaitoe – singer
• Dulari – female singer
• Rampresad Ramkhelawan – Singer
• Raj mohan – singer, actor, music director
• Ramjan Rahman – film director
• Dewinder singh sewnath – Baithak singer
• Kris ramkhelawan – singer
• Motimala Bhola singh – female singer
• Ragga menno – singer
• Angel aruna – singer
• Nisha madaran – singer
• MADHU lalbahadoer sing – female singer , Holland
Refrence : https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Surinamese
फिजी : ओसिअनिया में स्थित द्वीपीय देश फिजी में एक समय भारतीय मूल के लोगों की बहुतायतता थी। १९८० के दशक में भारतीय मूल के लोगों की स्थिति यहाँ बेहतर थी लेकिन उसके बाद वहां के मूल निवासियों के द्वारा भेदभाव और हिंसा के कारण फिजी से भारतीय मूल के लोगों का पलायन शुरू हुआ जो आज भी जारी है। यहाँ तक की बहुमत से प्रधामंत्री चुने जाने के बाद भी महेंद्र चौधरी को अपदस्थ कर दिया गया। २०१७ की जनगणना के अनुसार भारतीय मूल के फिजी वासियों की जनसँख्या घट कर लगभग ३७.५ % हो चुकी है, फिजी से होनेवाले पलायन में भारतीय मूल के फिजी वासी मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम चले गए हैं। नीचे भारतीय मूल के फिजी वासियों की जनसँख्या देशनुसार देखी जा सकती है।
आगे भारतीय मूल के महत्वपूर्ण फिजी वासियों के नाम देखें .
Refrence :https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Fijians
भारतीय मूल के लोग आज के कई कैरेबियन देशों में फैले हैं उन प्रमुख देशों में त्रिनिदाद, जमैका, गुयाना और बारबडोस हैं। कैरेबियन देशों में भारतीय भाषा एवं संस्कृति बमुश्किल ही बची है, हाँ वहां के लोगों से बात करने पर वो अपने को भारतीय संस्कृति से जुड़ा मानते हैं।आज की चटनी म्यूजिक जो की भोजपुरी चटनी गीत बोली जाती है कैरेबियन देशों में मशहूर है। कुछ प्रमुख भारतीय मूल के करेबियन लोगों के नाम जिसमें कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष और नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस नायपौल भी आते हैं:
Refrence :https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Caribbeans
हाँलाकि गिरमिटिया एक अपभ्रंश शब्द है लेकिन क्या संयोग है की गिरमिटिया शब्द में भी मिटटी और माटी है। गिर+मिट (माटी), और कैसा दुर्भाग्य है इन गिरमिटिया लोगों का कि जिन्होंने सात समुन्दर पार जाकर वहां की मिटटी के लिए काम किया,कई पीढियां खपा दी वहां की जमीन के लिये, फिर भी ज्यादर गिरमिटिया देशों में या यूँ कहें की मॉरिशस छोड़ लगभग अन्य सभी देशों में उन्हें आज भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है।आज भी ज्यादातर गिरमिटिया वंशज अपने को दबा हुआ या कहीं ना कहीं एक कसक लिए रहते हैं।
नीदरलैंड में रहने वाले एक गिरमिटिया ने बताया की मेरा जन्म सूरीनाम में हुआ वहां पर भेदभाव व् अन्य परेशानियों के चलते हमारा परिवार नीदरलैंड आ गया चूँकि सूरीनाम डच उपनिवेश था तो वहां के लोगों को नीदरलैंड की नागरिकता मिलने में आसानी होती है, लेकिन दर्द ये है कि मेरे पास तीन देशों का झंडा है। सूरीनाम क्योंकि वहां मेरा जन्म हुआ, भारत क्योंकि मैं गिरमिटिया वंशज हूँ और नीदरलैंड क्योंकि मैं यहाँ का नागरिक हूँ लेकिन मैं पूरी तरह से कहीं का नहीं हूँ। तीन तीन झंडे होते हुए भी मेरे पास कहने को अपना देश नहीं है। भारत से हमारे पूर्वज १५० साल पहले आ गए तो वो छूट गया, सूरीनाम में अफ्रीका मूल के लोगों का बोल बाला है और नीदरलैंड तो डच लोगों का है ही। मैं किसे अपना देश कहूँ ऐसा कहते हुए वो भावुक हो जाते हैं।
ऐसे बहुतायत लोग हैं, ये केवल नीदरलैंड में रहनेवाले सूरीनाम मूल के गिरमिटिया की कहानी नहीं है ऐसा बहुत देशों में होता है लेकिन एक सत्य ये भी है कि गिरमिटिया रूपी भारतवंशी भी हम भारत में रहने वाले भारतियों से कहीं कम नहीं हैं। वो आज भी अपने को भारत से जुड़ा मानते हैं, जब भी तिरंगा झंडा दिखता है उन्हें लगता है की ये अपना झंडा है। पूरे विश्व में आज भारत की एक पहचान है तो इन गिरमिटिया लोगों का भी अहम् योगदान है, ये भारत माता के वो सच्चे एवं कर्मठ सपूत हैं जिन्होंने भारतीयता को सही मायनों में जीवंत रखा।
Author – Devendra Singh</br >Writer, Lyricist, Filmmaker. Co-ordinator – Bihari Diaspora, GTRi
Picture 1 – Immigration Pass, 1903 Sanjay Kumar (Fiji) Picture 2 – JahaJi Bhai FB page